नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-14
लक्षणा ने कदंभ से कहा कि कदंभ तुम्हें याद है, जब चित्रसेन जी के कुछ सवालों के उत्तर नहीं मिल रहे थे और उन्होंने गुरुजी से कुछ प्रश्न किए तब गुरुजी ने उनसे कहा था। भटकाव श्रम और शंका इन दोनों को कम करने का कार्य ही गुरु का है।
चित्रसेन यदि शिष्य के मन में तिल मात्र भी शंका होगी तो वह गुरु की आज्ञा को मानने में संकोच करेगा। ऐसी स्थिति में वह प्रश्नों के उत्तर हेतु कहीं और भटक सकता है और इस स्थिति में अत्यधिक मानसिक और शारीरिक श्रम के साथ असत्य जन्म लेता है।
गुरु और शिष्य के संबंध संतुलित न होने के कारण कटु और टकराहट की स्थिति में भी आ सकते हैं, क्योंकि एक गुरू पूर्णहित के साथ एक पेड़ की तरह शिष्य का विद्या से सिंचन करता है, ताकि वह आगे चलकर एक विशाल वृक्ष की तरह अपनी छाया से भटके हुए राहगीरों सफर करने वाले यात्री और शरण में रहने वाले पशु पक्षी सबको शीतल छाया दे सकता है। पानी को समेटकर धरती की गहराईयों में असुरक्षित रख सकता है। भूमि की उपजाऊ क्षमता के साथ पर्यावरण का संतुलन बनाए रख सकता है।
उसी प्रकार कदंभ आज मैं तुमसे उस रहस्यमय मंदिर के बारे में जानना चाहती हुं। जिसका जिक्र तुमने मुझसे किया था। तब कदंभ लक्षणा से कहता कि हां बिल्कुल मैं तुम्हें उस रहस्यमय मंदिर की और ले चलता हूं। लक्षणा के लिए ऐसी रहस्यमई जगहों का देखना बिल्कुल नया सा था। उसके लिए यह कोई ख्वाब की स्थिति से कम नहीं था, क्योंकि ठीक सपनों की ही तरह कोई भी रहस्य प्रकट होता और अचानक गायब हो जाता। जहाँ कदंभ द्रष्टा की तरह कुछ भी कर पाने में संभव नहीं होती और सिर्फ उस कहानी का एक पात्र बनकर मात्र रह जाती है।
कभी कभी लक्षणा को ऐसा लगता जैसे, कहने को तो कदंभ उसके साथ है। लेकिन वास्तव में वे उस सपने का एक हिस्सा ही होंगे, क्योंकि कंप्यूटर और साइंस की इस भौतिक दुनिया में किसी अलौकिक संसार मात्र एक स्वप्न हो सकता है, क्योंकि अलौकिक संसार में सब कुछ समझ से परे और वहां विज्ञान मात्र एक सूक्ष्म कण के बराबर अहमियत रखता है। क्योंकि तर्क वितर्क और विमर्श के लिए यहां कोई स्थान नहीं जो विज्ञान का मूल रूप हो, इस दुनिया में किसी भी वस्तु का कोई आधार नहीं।
हर वस्तु छन या शक्ति सब कुछ सीमाओं से परे होती है। कुछ ऐसी ही स्थिति कदंभ की भी थी, कहने को तो कदंभ को मूल अलौकिक शक्तियां हासिल थी। लेकिन फिर भी उसकी शक्तियों की सीमाओं से भी परे एक दुसरी अलौकिक दुनिया हर पल प्रकट होते जा रही थी।
वह अपने आप को लक्षणा से भी ज्यादा असहाय महसूस करती था ,क्योंकि लक्षणा मानवीकाया के कारण पंचभूत तत्व की शक्ति के चक्र में सब को समाहित करने की शक्ति रखती थी। लेकिन नाग योनि में होने के कारण उसकी काया मात्र त्रिकोणीय श्रंखला में बनकर रह जाती है और वह पृथ्वी तत्व की शक्ति से अछूती रह जाती है, जिसके कारण वह बिना ईश्वरी इच्छा के शक्तियों का आभास तो कर सकती है, लेकिन उन्हें ग्रहण कर पाना उसके बस में नहीं था , इसलिए उसे यह कमी कहीं ना कहीं हर दम खलती रहती है, और वह कदंभ को माध्यम बना रहस्यों की गुत्थी सुलझाने की कोशिश करते रहते।
लेकिन अब लक्षणा भी अब नागमणि को धारण कर अपनी कुछ मानवीय शक्तिया प्राप्त कर चुकी थीं। जिसका आभास उन्हें तब हुआ जब वह सीढ़ी के अचानक हट जाने की स्थिति को नहीं जान पाए या यूं कहे कि उसकी शक्ति उसे यह मानने की इजाजत नहीं देती।
वे दोनों अत्यंत सजग होकर आगे बढ़ने लगे, क्योंकि उस स्थान की भूमिका रहस्य के साथ डरावनी भी लग रही थी, इतनी भीषण गर्मी के मौसम में उस स्थान पर इतनी घनी छांव के साथ बर्फी, शीतलता और बरगद पीपल के झुंड की लताएं जो किसी झूले की तरह जमीन को छूने को तत्पर थी, और उससे भी बड़ा आश्चर्य उस स्थान के किसी भी पेड़ पर एक भी पक्षी का घोंसला ना होना अत्यंत आश्चर्यजनक था।
वे दोनों मंदिर के भीतर जाने हेतु अगली पगडंडी से आगे बढ़े ही थे कि थोड़ी दूर चलने पर उन्हें अत्यंत स्वर में उठते हुए पानी के बहाव की आवाज ने चौंका दिया। उन्होंने देखा कि उनके ठिक बाई और पास से ही एक नदी की बारीक शाखा अत्यंत वेग के साथ बह रही थी। आगे चलने पर उन्हें एक दरवाजा दो पेड़ों के मध्य सटा हुआ किसी अलमारी के दरवाजे सा दिखा, वह ना जाने क्या सोचकर आए और क्या हो रहा था, दूर से जो मंदिर जैसा दिख रहा था, पास आने पर ठीक उसके विपरीत नजर आता....... बिल्कुल उसी तरह जैसे हम किसी आईने को जिस जिस कोने से देखते हैं, उतने ही अलग-अलग तस्वीरें हमें दिखाई देती है। खैर जैसे ही वे मंदिर के मुख्य द्वार पर पहुंचे उन्होंने देखा कि वह दरवाजा मात्र हल्का सा ऐसे ही लगा कर रख दिया हो, या अभी अभी उनके पहले कोई दरवाजे में प्रवेश करके गया हो। लक्षणा ने दरवाजा खोलते हुए अंदर प्रवेश किया, उन दोनों ने अंदर पहुंचकर देखा कि वहां अनेकों छोटे-बड़े मंदिर और सबके बीच कुछ अर्धमानवाकर सर्पों की मूर्तियां एक दूसरे की ओर मुंह कर प्रणाम की मुद्रा में खड़ी हुई थी। और उन्हीं के बीच एक पूर्ण नाग की मूर्ति रूप में शोभायमान हो रही थी, ऐसा लगता था जैसे यह सभी सर्प उनके सेवक हो, कदंभ ने लक्षणा की ओर मुस्कुराकर कहा, चलो अब बताओ क्या कहा था तुमने कि यहां पर आकर यदि कोई नागवंशी मानो इस स्तंभ को स्पर्श करेगा तो उसे अपने कुलदेवता के स्पर्श दर्शन हो पाएंगे, कहते हुए उसने कदंभ को जैसे आगे क्या करना होगा, यह जानने हेतु प्रश्न किया, और वहां पर कदंभ ने एक स्तंभ की ओर इशारा किया, कदंभ ने मुस्कुराते हुए कहा, कौन सा स्थान जरा ध्यान से देखिए.......यहां तो और कोई भी स्तंभ है और तभी अन्य अतिरिक्त स्तंभ भी नजर आने लगे।अरे यह क्या कहते हुए जैसे लक्षणा की चीख सी निकल गई थी, क्योंकि वहां अचानक स्तंभों का प्रकट होना और उनका अपने ही स्थान पर इस तरीके से घूमना कि वह आसमान की और गति कर रहे हैं......
और कुछ-कुछ समय के अंतराल में उन सभी स्तंभों से तेज बिजली सी चमकदार एक जलसा बनाती थी। तभी लक्षणा ने वहां एक स्तंभ को हाथ लगा कर देखना चाहा कि इस स्तम्भ को हाथ लगाने से कुछ होता भी है या नहीं, लेकिन कुछ भी ना हो सिर्फ वह स्तम्भ अचानक लड़खड़ाकर अपनी जगह यथावत खड़ा हो गया।
क्रमशः....
Mohammed urooj khan
31-Oct-2023 05:03 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Gunjan Kamal
25-Oct-2023 05:39 PM
शानदार भाग
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